“विचित्रः साक्षी” पाठ ओमप्रकाश ठाकुर द्वारा रचित, बंगाली साहित्यकार बंकिमचंद्र चट्टर्ज़ी के न्यायाधीश के रूप में निर्णय पर आधारित कथा का संपादित अंश है। इसमें एक निर्धन पिता, जो अपने बेटे को देखने एक कॉलेज ले जाता है, अचानक रात्रि में किसी गृहस्थ के यहां ठहरता है। उसी दौरान एक चोर घुस आता है, और गलत रूपमा वह पिता को ही आरोपी समझ कर गिरफ्तार कर लिया जाता है। जब अदालत में कोई साक्ष्य नहीं होता, तब न्यायाधीश अपनी बुद्धि द्वारा “विचित्रः साक्षी” पैदा करते हुए शव जैसे अप्रत्यक्ष प्रमाण पर भरोसा कर सही न्याय दे देते हैं ।
Chapter Highlights:
- ओमप्रकाश ठाकुर की कथा, मूल रूप से बंकिमचंद्र चट्टर्ज़ी के न्यायाधीश निर्णय पर आधारित
- निर्धन पिता और छात्रीय पुत्र की परीक्षा में न्याय का उलझा प्रसंग
- रात में चोरी, चोर की गतिविधि, और गलत गिरफ्तारी की घटना
- न्यायाधीश की बुद्धि—प्रकट या अप्रत्यक्ष साक्ष्य के बिना साधना
- “विचित्रः साक्षी” concept: अप्रत्यक्ष संकेतों (जैसे शव) से न्याय करना
- नैतिक शिक्षा: युक्ति, विवेक और न्याय का महत्व, “विचित्रः साक्षी” से सत्य उजागर होता है