“सौहार्दं प्रकृतेः शोभा” अध्याय में नैतिक कथा के माध्यम से प्रकृति और समाज में सौहार्द का महत्व बताया गया है। इसमें पशु-पक्षियों के माध्यम से दिखाया गया है कि कैसे स्वार्थ और अहंकार से भरे एक-दूसरे से श्रेष्ठ दिखने के प्रयास से टूट-फूट और कलह होती है। अंत में प्रकृतिमाता आती है और सभी को समझाती है कि “सभी प्राणी एक-दूसरे पर आश्रित हैं”—इसलिये हमें आत्मगौरव छोड़कर सहयोगात्मक, मैत्रिपूर्ण जीवन जीना चाहिए।
Chapter Highlights:
- समाज में स्वार्थ और श्रेष्ठ दिखने की प्रवृत्ति का चित्रण
- पशु-पक्षियों के माध्यम से अहंकार और कलह का उपमा रूप में वर्णन
- प्रकृतिमाता का प्रवेश—सभी जीवों में सहअस्तित्व और आश्रितता का संदेश
- सौहार्दं प्रकृतेः शोभा = प्रकृति में शांति और सौहार्द की महत्ता
- नैतिक शिक्षा: आत्मगौरव छोड़ सहयोगात्मक और मैत्रीपूर्ण व्यवहार